अली फजल और सोनाली बेंद्रे लीड रोल में रंगा-बिल्ला’ पर वेब सीरीज में आएंगे नजर

मुंबई
ओटीटी की दुनिया में इन दिनों असल जिंदगी में घटी दिल दहला देने वाली अपराध की कहानियों पर खूब कॉन्टेंट परोसा जा रहा है। इसी कड़ी में अब 1978 के कुख्यात रंगा-बिल्ला केस पर भी वेब सीरीज बनाने की तैयारी है। दो बच्चों की किडनैपिंग और हत्या का यह ऐसा मामला था, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। खास बात यह है कि इस सीरीज में 'मिर्जापुर' के गुड्डू भैया यानी अली फजल और सोनाली बेंद्रे लीड रोल में होंगे।
रिपोर्ट के मुताबिक, रंगा-बिल्ला पर बन रही इस वेब सीरीज की शूटिंग दिल्ली में शुरू हो चुकी है। प्रोडक्शन से जुड़े सूत्र के हवाले से कहा गया है कि मेकर्स की टीम कई महीनों से इस विषय पर रिसर्च कर रही है। सोनाली और अली फजल दोनों ही इस सीरीज में जांच अधिकारियों की भूमिका निभाएंगे। दिल्ली में सीरीज की शूटिंग अप्रैल के अंत तक जारी रहेगी।
बीते दिनों 'ब्लैक वारंट' में दिखी थी हल्की झलक
यह पहली बार है जब रंगा-बिल्ला केस पर एक पूरी वेब सीरीज बनाई जा रही है। हालांकि, इससे पहले 'ब्लैक वारंट' के कुछ एपिसोड में इसकी छोटी सी झलक जरूर देखने को मिली है। बताया जाता है कि यह एक स्टैंड अलोन वेब सीरीज होगी, जो इसी एक केस की घटनाओं को गहराई से दिखाएगी।
इसी साल 2025 के अंत में रिलीज हो सकती है सीरीज
रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली में शूटिंग के बाद, सीरीज की शूटिंग उत्तर प्रदेश में कई स्थानों पर होगी और फिर अंत में मुंबई में आखिरी शेड्यूल शूट होगा। इसी साल जून और जुलाई शूटिंग पूरी कर सीरीज के पोस्ट-प्रोडक्शन का काम शुरू हो जाएगा। सब ठीक रहा तो इसी साल 2025 के अंत तक यह वेब सीरीज रिलीज हो जाएगी।
क्या है रंगा-बिल्ला केस
यह केस असल में गीता और संजय चोपड़ा के अपहरण का है, जिसे रंगा-बिल्ला मामले के रूप में भी जाना जाता है। साल 1978 में दो कुख्यात अपराधियों कुलजीत सिंह उर्फ रंगा कुश और जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला ने भाई-बहन गीता और संजय का दिल्ली में अपहरण किया था। बाद में दोनों ने मिलकर उन बच्चों की क्रूरता से हत्या कर दी। हालांकि, बच्चों का अपहरण फिरौती के लिए किया गया था, लेकिन जब किडनैपर्स को पता चला कि बच्चों के पिता एक नौसेना अधिकारी हैं, तो उन्हें मार दिया गया।
हत्या से पहले गीता के साथ किया था रेप!
पुलिस की जांच में दोनों आरोपियों रंगा और बिल्ला ने शुरू में माना था कि हत्या से पहले उन्होंने गीता के साथ बलात्कार किया था। लेकिन बाद में वह अपने बयान से पलट गए। फोरेंसिक रिपोर्ट में भी रेप की पुष्टि नहीं हो सकी। दोनों अपहरणकर्ताओं को कोर्ट ने दोषी माना था और मौत की सजा सुनाई थी।
26 अगस्त 1978 को ऐसे हुई थी किडनैपिंग
गीता चोपड़ा की उम्र महज साढ़े 16 साल थी। जबकि उनका भाई संजय 14 साल का। गीता चोपड़ा नई दिल्ली के जीसस एंड मैरी कॉलेज में सेकेंड ईयर की स्टूडेंट थीं और संजय मॉडर्न स्कूल में 10वीं में पढ़ता था। उनके पिता मदन मोहन चोपड़ा भारतीय नौसेना में कैप्टन थे। उनका परिवार धौला कुआं में ऑफिसर्स एन्क्लेव में रहता था। शनिवार 26 अगस्त 1978 को गीता और संजय को ऑल इंडिया रेडियो पर 'युवा वाणी' कार्यक्रम में भाग लेना था। उन्हें शाम 7 बजे तक संसद मार्ग स्थित ऑल इंडिया रेडियो के कार्यालय पहुंचना था। उनके पिता को कार्यक्रम के बाद रात 9 बजे ऑल इंडिया रेडियो के बाहर से बच्चों को वापस घर लेने के लिए आना था।
लिफ्ट देने के बहाने भाई-बहनों को कार में बिठाया
गीता और उसका भाई संजय, दोनों घर से निकले। कॉलोनी के ही एक व्यक्ति ने उन्हें लिफ्ट दी और गोल डाकखाना तक छोड़ दिया। यहां से आकाशवाणी केंद्र थोड़ी ही दूरी पर था। दोनों टैक्सी के इंतजार में सड़क किनारे खड़े थे। तभी रंगा-बिल्ला पीले रंग की फिएट कार लेकर पहुंचे और लिफ्ट देने के बहाने दोनों को बिठा लिया। दोनों बच्चों को किडनैप करने के बाद रंगा और बिल्ला शंकर मार्केट और लोहिया अस्पताल होते हुए रिज इलाके में पहुंचे। यहां गाड़ी रोकर उन्होंने संजय की हत्या की। इसके बाद दोनों ने गीता के साथ रेप किया। इसके बाद बिल्ला ने तलवार से गीता की गर्दन पर वार किया, जिससे मौके पर ही उसकी मौत हो गई। रंगा-बिल्ला ने लाशों को उठाया और सड़क किनारे फेंककर वहां से भाग निकले।
8 सितंबर 1978 को ट्रेन से गिरफ्तार हुए थे रंगा और बिल्ला
रंगा और बिल्ला को वारदात के कुछ हफ्ते बाद 8 सितंबर 1978 को ट्रेन में गिरफ्तार किया गया। उस दिन, दोनों कालका मेल में तब चढ़े थे, जब ट्रेन आगरा के पास यमुना नदी के पुल के पास धीमी हो गई थी। जिस डिब्बे में वे चढ़े, वह सैन्य कर्मियों के लिए रिजर्व था। इसलिए जब उनसे पहचान पत्र दिखाने के लिए कहा गया, तो उन्होंने सेना के जवानों के साथ हाथापाई शुरू कर दी और इस तरह दबोचे गए।
दोनों ने कबूला गुनाह, लेकिन फिर पलट गए
गिरफ्तारी के 14 दिन बाद 22 सितंबर को रंगा ने अपनी मर्जी से अपने अपराध कबूल कर लिए। उसने महानगर मजिस्ट्रेट के सामने सारे गुनाह मानते हुए बयान दर्ज किया। लेकिन फिर 20 नवंबर को बयान वापस ले लिया गया। इसी तरह, 19 अक्टूबर को बिल्ला ने भी अपना कबूलनामा दर्ज करवाया और फिर 27 अक्टूबर इससे पलट गया।
कोर्ट ने रंगा-बिल्ला को सुनाई मौत की सजा
कुलजीत सिंह उर्फ रंगा और जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला को दिल्ली के एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत दोषी माना और मौत की सजा सुनाई गई। उन्हें धारा 363 (अपहरण), 365 (अवैध कारावास के साथ अपहरण), 366 (यौन संभोग के इरादे से एक महिला का अपहरण) और 367 (चोट पहुंचाने के इरादे से अपहरण) के तहत अपराधों के लिए भी दोषी ठहराया गया।
सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति से लगाई थी गुहार
दोनों दोषियों ने दिल्ली हाई कोर्ट में मौत की सजा के फैसले को चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने 16 नवंबर 1979 को फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद रंगा और बिल्ला ने भारत के राष्ट्रपति से संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत क्षमादान मांगा। राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने बिना कारण बताए याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद उन्होंने फिर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। 21 अप्रैल 1981 को सर्वोच्च न्यायालय ने मौत की सजा को बरकरार रखा। इन याचिकाओं के कारण उनके मौत की सजा में देरी हुई। मुकदमा और फांसी की सजा में लगभग चार साल लग गए।
31 जनवरी 1982 को रंगा और बिल्ला को दी गई फांसी
आखिरकार, रंगा और बिल्ला को उनके गुनाहों की सजा मिली। दोनों को 31 जनवरी 1982 को फांसी दे दी गई। इस दौरान बिल्ला शांत था, लेकिन रंगा ने फांसी पर चढ़ने का विरोध किया। फांसी पर लटकाए जाने के दो घंटे बाद जब डॉक्टरों ने चेक किया तो बिल्ला मर चुका था, लेकिन रंगा की नाड़ी चल रही थी। समझा जाता है कि उसने फांसी के वक्त सांस रोक ली थी। सजा की प्रक्रिया को पूरी करते हुए एक कर्मचारी ने फांसी के तख्त से नीचे से रंगा के पैर खींचे और फिर उसकी मौत हुई। उनके शवों पर उनके रिश्तेदारों ने दावा नहीं किया। लिहाजा, तिहाड़ जेल प्रशासन ने ही उनका अंतिम संस्कार किया।